
फरीदाबाद/सूरजकुंड 15 फरवरी।
सुनील कुमार जांगड़ा.
धरती को स्वर्ग से सुन्दर बनाया जा सकता है.धरती माँ ट्रस्ट स्टॉल न.608 इंटरनेशनल सूरज कुंड क्राफ्ट मेला 2024 कौन सी वस्तु कहाँ,कैसे,किस तरह रखनी है यह मेरे पिता स्वर्गीय श्री टीकम सिंह बिष्ट ने सिखाई आज यह सीख मेरा आदर्स और कई जनों का रोजगार का साधन बनी हुई है।में भवान सिंह बिष्ट धरती माँ ट्रस्ट अध्यक्ष , मेरी पत्नी राधा बिष्ट ट्रस्टी , पूरा परिवार और 150 लोगों की टीम मिलकर पर्यावरण संरक्षण के काम में लगे हुए है।किस तरह मानव प्रकृति से जुड़ सके।धरती समस्त प्राणी जगत व मानव समाज की माँ है ।आज हम अपनी माँ का किस तरह दोहन,प्रदूषण, गंदगी यहां तक पंच तत्वों को भी प्रदूषित कर दिया है । अनेकों नई तरह की बीमारियों का जन्म हो रहा है। पर इसका समाधानकर्ता मनुष्य स्वयं है । यह कार्य इतना असंभव भी नहीं है । इसे सम्भव बनाया जा सकता है ।प्रयत्नों और प्रयास की आवश्यकता है। मानव प्रकृति का सिरमोर कहा जाने वाला प्राणियों में सर्व श्रेस्ट प्राणी है।परमात्मा ने मनुष्य को संपूर्ण ब्रह्मांड का संरक्षक बनाया हुआ है। अब यह मानव पर निर्भर है बह अपनी प्रकृति को कितना स्वच्छ व सुन्दर बना सके ताकि यह धरती स्वर्ग से सुन्दर कहलाये। धरती माँ ट्रस्ट भी प्रकृति को संरक्षित करने में किस तरह अपना योगदान दे रही है।आइये जानने प्रयास करते हैं। किसी भी वस्तु का सही इस्तेमाल व बेकार पड़ी वस्तु को दुबारा इस्तेमाल में लाना यह बचपन से किआदत बनी हुई थी।1991में दिल्ली शहर आना हुआ काफी समय रोजी रोटी व चमड़ा ब्यापार के उतार चढ़ाव में व्यतीत हुआ ने 2001 में यह सब छोड़ कर लकड़ी का कार्य सुरु किया जून 2004 में आध्यात्मिक गुरु मिलन के बाद उन्नति की राह की ओर कदम बढ़ने लगे । इसी वर्ष एंड रिट्ज हाईड्रो कम्पनी में मेंटेनेंस का कॉन्ट्रेक्ट मिला ।2005 लार्सन एंड टुब्रो कम्पनी में कॉन्ट्रेक्ट मिल गया अब धीरे गाड़ी सही दिशा की ओर बढ़ने लगी । इसी वर्ष ओखला इंडस्ट्रियल के पास जलते हुये कूड़े के पहाड़ ने जीवन में उथल पुथल मचा दी रोज आये दिन मानव समाज द्वारा जलाये जा रहे कूड़े ,नदी नालों में बहती पन्नी, बोतल व दिल्ली, एन सी आर की गन्दगी, सड़कों, गलियों, कॉलोनियों की हालत ने मुझे मेरे गॉंव ससबनी नैनीताल की यादों में पहुँचा दिया ताजी हवा ,पानी,जंगलों की याद सताने लगी।क्योंकि वो मेरी जन्म स्थली है। प्रदूषण से मन ऊबने लगा। इसके समाधान हेतु मन में कुछ नया करने के सवाल जन्म लेने लगे बचपन की आदत को नया रूप मिलने लगा । कुछ क्रिएटिव विचार ने जन्म लिया। क्यों न पन्नी व वेस्ट प्लास्टिक बोतलों से कुछ नया किया जाय। बोतल को दो हिस्सों में काट कर जमीन पर कोई टुकड़ा गिराये बिना गमले ,लैम्प शेड, चप्पल तैयार करने लगे। मानव समाज द्वारा इन वस्तुओं को सराहा जाने लगा ।पहली प्रदर्शनी लार्सन एंड टुब्रो में श्री डी एस कपूर निदेशक श्री सीता रमण जी असिस्टेंट डायरेक्टर द्वारा लगवायी गयी कम्पनी ने प्रोसाहन के साथ बेस्ट आर्टिस्ट व बेस्ट स्टॉल का परुस्कार भी दिया गया। उत्साह उमंग हौसलों के संग ने और नये संकल्पों का जन्म हुआ । कि कुड़े से भी रोजगार को बढ़ावा दिया जा सकता है। आज के बाद धरती पर कुछ भी नहीं फैंकना है। हर तरह के कूड़े को पुनः इस्तेमाल में लाना है। यह प्रयोग परिवार को बदलने के लिए किया गया कामयाबी मिलने लगी। फिर इसको विस्तृत रूप दिया । 2014 में धरती माँ ट्रस्ट नाम से पर्यावरण संरक्षण का रजिस्ट्रेशन हुआ। 2015 पहली बार जी न्यूज वाले हमारे घर पहुँच गये। इसी वर्ष वन विभाग ,बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी , ने इन घोंसलों व वेस्ट प्लास्टिक बोतलों से बनी वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाने को आमंत्रित किया ।उस प्रदर्शनी के मुख्य अतिथि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर जी ने धरती की रक्षा कैसे कर सकते है इस पर नुकड़ नाटक करने को कहा तभी धरती माँ ट्रस्ट की टीम ने लाइव प्रस्तुति देकर प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। इसी वर्ष कूड़ा न जलायें न बहायें न फैलायें इसे विश्व कल्याण के लिये उपयोगी बनायें। इस स्लोगन को बनाया गया और जैविक उदपाद को जीवन में अपनायें । इस वाक्य को मूल उद्देश्य बना लिया। 2017 से दिव्यांगों व घरेलू महिलाओं की सहायता से ट्रस्ट जूट व कपास से बने जैविक उदपाद को देश ही नहीं विदेशों तक पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं । कोरोना काल में भी ट्रस्ट के साथ जुड़ी बहनों को रोजगार से जोड़े रखा इनके द्वारा बनाये उदपाद को सड़क के किनारे बैठ कर बेचा ताकि इन्हें रोजगार मिलता रहे । उस समय अन्य मानवीयता के लिए अनेकों सहायता के कार्य किये गये।जिससे समाज कोरोना से बाहर निकल कर मुख्य धारा से जुड़ा रहा। ट्रस्ट पेड़ लगाने,सफाई कार्यों व स्कूलों कॉलेजों में जाकर वेस्ट मैनेजमेंट का भी कार्य कर रही है। आज ट्रस्ट के साथ जुड़ कर अनेकों स्कूली बच्चों का जीवन बदल रहा है।कई ऐसे भी हैं जो हमसे सीख कर अपने जीवन को स्वावलंबी बना रहे हैं।