
नई दिल्ली.11 सितंबर।
सुनील कुमार जांगड़ा.
लेखक एवम् पूर्व आईपीएस सुरेश कुमार शर्मा द्वारा भ्रमजाल पर आधारित लिखा कि स्टेशन पर पहुँचते ही मैंने बेचैनी से चारों ओर नज़रें दौडाईं, क्योंकि मेरे पास सामान बहुत अधिक था और ट्रेन छूटने में दस मिनट से भी कम का समय बचा था और प्लेटफ़ार्म बहुत दूर था।
तभी सुरीली आवाज़ मेरे कानों में पड़ी “कौन सी ट्रेन है बाबू ? किस प्लेटफ़ार्म पर जाना है ? चलिये हम पहुँचा दें “ मैंने पलट कर देखा तो दो अधेड़ उम्र की महिलायें, सामान ढोने के ठेले के साथ खड़ी थीं।
“राजधानी है बेंगलोर वाली, प्लेटफ़ार्म बारह से…पर तुम दोनों नहीं पहुँचा पाओगी क्योंकि ट्रेन छूटने में बहुत कम समय बचा है “ मैं थोड़ा बेरुख़ी से बोला।
अरे हमें मौक़ा तो दो बाबू, जब ट्रेन पर बैठ जाओ तभी पैसे देना “
न जाने क्या सोच कर मैंने सहमति में सिर हिलाया और उन महिलाओं की सहायता से जल्दी जल्दी अपना सामान ठेले पर रखने लगा।सामान रख वे दोनों महिलायें तेज़ी से ठेला खींचने लगीं। उनकी फुर्ती देख कर मैं हैरान था क्योंकि उनके साथ चलने के लिये मुझे लगभग दौड़ना पड़ रहा था। उन दोनों महिलाओं ने मुझे समय पर ट्रेन में पहुँचा दिया था। जब मैं उन्हें पैसे देने लगा तो उनमें से एक महिला बोली
“फिर किसी औरत से न कहना बेटा कि कोई काम उससे न हो पायेगा। हम औरतें हैं इसलिये लोग हमें काम देने से कतराते हैं…सभी सोचते हैं कि हमसे ज़्यादा मेहनत का काम नहीं हो पायेगा। पर अगर हम ठान लें तो कोई भी काम हमारे लिये असम्भव नहीं। हमारे बच्चों ने हमें बेसहारा छोड़ दिया। भीख माँगने से तो अच्छा है न बेटा कि हम मेहनत करके अपना पेट पालें “
मुझे अपनी पुरुषवादी सोच पर ग्लानि हो रही थी। मैं यह भूल गया था कि औरत, पुरुष से शायद शारीरिक बल में कमज़ोर हो पर मानसिक रूप से कहीं अधिक मज़बूत और ताक़तवर होती है।आज मुझे अपने ही बुने भ्रमजाल से बाहर आ, आंतरिक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही थी।
दोस्तों भारत में साइंस, टेक्नालाजी, इंजीनियरिंग और गणित में लड़कियों का एनरोलमेंट 43 प्रतिशत तक पहुंच चुका है । हमारी देश की महिलाएँ चाँद पर पहुँच गई हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, ओलंपिक में पदक जीत रही हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ चला रही हैं या राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर संभाल रही है । मेडिकल फील्ड हो या खेल का मैदान हो, बिजनेस हो या राजनैतिक गतिविधि हो, भारत में महिलाओं की केवल भागेदारी नहीं बढ़ी, बल्कि वो हर क्षेत्र में आगे आकर नेतृत्व कर रही हैं।
यह सब महिला सशक्तिकरण के प्रति विश्वास के साथ हमारी सकारात्मक सोच का ही परिणाम है
मंजिल उन्हीं को मिलती है*
जिनके सपनो में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है…,
खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं,
धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं,
हमें क्या रोकें ये जमाने वाले,
*हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं।
हम बात कर रहे हैं महिला शक्ति के सामर्थ्य की। हाँ महिलाएँ अब हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है।
लोगों की सोच बदल रही है ।