
फरीदाबाद.5 सितंबर।
वंदना.
वर्ग अनुदेशक नरेश कुमार. गवर्नमेंट आईटीआई वूमेन सेक्टर 18ए ओल्ड फरीदाबाद द्वारा टीचर डे पर संदेश में कहा कि सावित्री बाई फुले सिर्फ भारत की पहली महिला शिक्षक ही नहीं थी, इसके अलावा समाज हित में उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं के हक और शिक्षा के आवाज बुलंद की
सावित्रीबाई फुलेः इन्हें पहचानते हैं आप? ये कोई आम महिला नहीं हैं, इतिहास में इनके नाम रिकॉर्ड भी दर्ज है
संघर्षों से भरी है भारत की पहली महिला टीचर की कहानी भारत की पहली महिला शिक्षका सावित्रीबाई फुले की आज जयंती है। सावित्री बाई फुले सिर्फ भारत की पहली महिला शिक्षक ही नहीं थीं, इसके अलावा वे समाज सुधारक और मराठी कवियत्री भी थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं के हक और शिक्षा जगत में कई प्रेरणास्रोत काम किए। भारत की पहली महिला शिक्षिका का जन्म 3 जनवरी 1831 को एक मराठी दलित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था और इनका विवाह 1840 में ज्योतिराव फुले से हुआ था।
“प्रेरणास्रोत सावित्रीबाई फुले जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन। वह हमारी नारी शक्ति की अदम्य भावना का प्रतीक है। उनका जीवन महिलाओं को शिक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए समर्पित था। सामाजिक सुधार और सामुदायिक सेवा पर उनका ध्यान समान रूप से प्रेरक है।”
महिलाओं को हक दिलाना और शिक्षित करने ही जीवन का उद्देश्य
सावित्रीबाई फुले को शिक्षा जगत में महिलाओं को लाने और शिक्षित करने के लिए तब के समाज का बहुत ज्यादा विरोध झेलना पड़ा था। उन्होंने अपना जीवन एक मिशन की तरह जिया, जिसका उद्देश्य था महिलाओं के लिए समाज की कुरीतियों को
खत्म करना जैसे विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की आजादी और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। आपको बता दें कि वे एक बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं, उनको मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।
समाज का विरोध झेला
सावित्री बाई पूरे देश की महानायिका हैं। उन्होंने पूरे मानव समाज के लिए काम किया। उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेला। जब वे स्कूल में पढ़ाने जाती थीं, तो उनके विरोधी उनपर पत्थर मारते, गंदगी, गोबर कीचड़ फेंकने जैसे घिनौने काम करते। क्योंकि तब के समय में बालिकाओं के लिए स्कूल खोलना बहुत बड़ा पाप समझा जाता था। सावित्री बाई फुले ऐसी ही कुरुतियों के खिलाफ बुलंद आवाज बनकर खड़ी हुई थीं।
5 सितंबर 1848 को खोला था पहला स्कूल
सावित्री बाई के पति ज्योतिराव ने हर तरह से उनका साथ दिया। ज्योतिराव को बाद में ज्योतिबा के नाम से भी जाने गए। सावित्री बाई ने अपने पति के साथ मिलकर 5 सितंब 1848 को पुणे में विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के सामाजिक उत्थान तथा महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। एक साल में सावित्री बाई और महात्मा फुले पांच नए स्कूल खोलने में सफल हुए। इस काम के लिए तत्कालीन सरकार ने इन सम्मानित भी किया।