

फरीदाबाद.21 जून।
सुनील कुमार जांगड़ा.
विषय विशेषज्ञ आपदा प्रबंधन डॉ एमपी सिंह का कहना है कि गत वर्षो से ग्रीष्म लहर की वजह से मृत्यु दर बढ़ती जा रही है यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है और आपदा प्रबंधन विभाग के लिए यह चुनौती बनती जा रही है इससे निपटने के लिए लोगों को जागरूक करना होगा तथा सक्षम बनाना होगा क्योंकि समय पर मानसून ना आने की वजह से भारत का बड़ा हिस्सा सूखा ग्रस्त और शुष्क हो गया है।
उन्होंने कहा कि अधिकतर लोगों ने पेड़ पौधों को काटकर सौंदर्य करण कर लिया है तथा बहू मंजिला इमारतें खड़ी कर दी है जिसमें हर कमरे में एयर कंडीशन लगा हुआ है हर ऑफिस एयर कंडीशन है हर माल, हर अस्पताल, हर धर्मशाला, हर मंदिर हर सभागार एयर कंडीशन हो चुके हैं नीचे से फर्श पक्के है जिस पर सूर्य की किरणें पढ़ने की वजह से अधिक देर तक पक्की जगह गरम रहती है।
उन्होंने बताया कि पहले पेड़ पौधे थे राहगीर उनके नीचे आराम कर लेते थे नीचे एक अच्छी जगह होती थी इसलिए ठंडक मिल जाया करती थी।जगह-जगह प्याऊ लगे हुए थे जगह-जगह पानी से भरे घड़े रखे होते थे कहीं ट्यूबवेल चल रहा होता था कहीं नदी मिल जाती थी कहीं तालाब मिल जाते थे तब पानी की कमी की वजह से इंसान नहीं मरता था।
लेकिन अब प्याऊ नहीं है अब ट्यूब वेल भी दिखाई नहीं पड़ते हैं जमीन के नीचे पानी सूखता जा रहा है पोखर, तालाब, बाबरी सूख गई है पेड़ काट दिए गए हैं अधिकतर जगह सौंदर्य करण के नाम पर पक्के फर्श बना दिए गए पहाड़ों को काटकर सड़क निकाल दी गई पुल बना दिए गए, बाजार बना दिए गए हैं।
नई तकनीक पर शहर बना दिए गए जिसकी वजह से अधिक वाहन सड़क पर दिखाई पड़ रहे है जो प्रदूषण फैला रहे हैं पीने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है स्वच्छ हवा नहीं मिल पा रही हैं। प्राथमिक सहायता नामक पुस्तक के लेखक एवं लाइफ सेवर डॉ एमपी सिंह का कहना है कि सन बर्न से त्वचा में जलन और पीड़ा हो जाती है सर दर्द हो जाता है चक्कर आने लगते है बेहोशी हो जाती है बढ़ती गर्मी से मधुमेह अस्थमा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि होने लगती है। गर्म लू लगने से थकावट और कमजोरी हो जाती है जी मिचलाने लगता है उल्टी करने को दिल करता है मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है पसीना आने लगता है।
इससे बचाव करने के लिए अधिक गर्मी में बाहर नहीं निकलना चाहिए ।
यदि उपर्युक्त लक्षणों में से कोई लक्षण दिखाई पड़ रहा है तो रोगी की हवा करनी चाहिए, रोगी को ठंडा स्थान पर ले जाना चाहिए, उसकी टाई बेल्ट और जूते उतार देने चाहिए, ठंडे पानी की पट्टी से उसके शरीर को पौंछना चाहिए उसको दिलासा देनी चाहिए।
उसे नींबू पानी शरबत ओआरएस का गोल नारियल पानी ठंडा दूध आदि देना चाहिए।
यदि रोगी को ज्यादा परेशानी हो रही हो तो अति शीघ्र नजदीकी अस्पताल ले जाना चाहिए।
डॉ एमपी सिंह का कहना है कि बढ़ती गर्मी की वजह से बिजली की मांग बढ़ जाती है ।सीमा से अधिक तापमान हो जाने पर किसान की पैदावार प्रभावित हो जाती है घुमंतू जातियां, झोपड़पट्टी, स्लम बस्ती, लोहार/ भूभडिया, जगह-जगह पर तंबू डालकर रहने वाले लोग अधिक प्रभावित होते हैं।
खनन में काम करने वाले, भट्टे पर काम करने वाले, गर्म लोहे का काम करने वाले, वेल्डिंग का काम करने वाले, रेडी पटरी लगाने वाले, रिक्शा चलाने वाले, सड़क किनारे जीवन यापन करने वाले, भिखारी, मंगतू स्ट्रीट वेंडर, सफाई कर्मचारी, चौक चौराहों पर खड़े पुलिस कर्मचारी, सीमाओं पर खड़े देश के प्रहरी अधिक प्रभावित होते हैं।
इस समस्या से निजात पाने के लिए डॉ एमपी सिंह का कहना है कि अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए, उनकी परवरिश करनी चाहिए, दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक कर्फ्यू लगा देना चाहिए, सुबह शाम कार्य करने की पॉलिसी बनानी चाहिए। जगह-जगह पानी के घड़े रखवाने चाहिए, जगह-जगह पानी की सरकारी टंकियां लगवानी चाहिए जहां पर एक ₹2 डालकर एक दो लीटर पानी निकाला जा सके पानी की मशीनों से छिड़काव करवाना चाहिए, बायोगैस, प्राकृतिक गैस, तरलीकृत गैस को प्रोत्साहन देना चाहिए ।
तालाब और झीलों का जीणोद्धार करना चाहिए।
ग्रीष्म लहर से बचाव हेतु सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए।
यातायात भीड़ को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन व साइकिल आदि का प्रयोग करना चाहिए।
इलेक्ट्रिक वाहनों एवं सीएनजी वाहनों को उपयोग में लाना चाहिए।
मानव जीवन पशुधन वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए दीर्घकालीन कार्य योजना बनानी चाहिए ।
डॉ एमपी सिंह ने बताया कि भारतवर्ष में 1981 से 1990 तक 5457 और 2011 से 2020 तक 1155 मौतें गर्मी के कारण हो चुके हैं ।
उन्होंने कहा कि ग्रीष्म लहर भारत के लिए कोई बड़ी चीज नहीं है यह पुरानी परिपाटी चली आ रही है मौसमी घटनाओं से निपटने के लिए ठोस योजनाओं का निर्माण एवं क्रियान्वयन होना चाहिए। हीट अवरोधक शेल्टर व्यापक रूप से होने चाहिए।
अत्यधिक तापमान में वृद्धि जीव जंतुओं प्राणियों वनस्पतियों सभी के लिए घातक सिद्ध होती है। इसका मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग एवं जनसंख्या वृद्धि है ।
यह स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब प्राकृतिक भूमि को फुटपाथ इमारत आदि से पाट दिया जाता है जो गर्मी को अवशोषित करती है और काफी देर तक बनाए रखती है।
यह आर्टिकल जनहित और राष्ट्रहित में लिख दिया गया है ताकि उक्त समस्याओं से निजात दिलाने में सहायक हो सके।