
नई दिल्ली.16 फरवरी।
सुनील कुमार जांगड़ा.
लेखक एवं पूर्व आईपीएस सुरेश कुमार शर्मा ने लिखा कि
जब तक संसार की वासनाएँ मन से नहीं निकालेंगे,जीवन से दुख दूर कैसे होगा फिर उन्होंने अगली कड़ी में लिखा कि एक गाँव के लोग बड़े परेशान थे। कारण यह था कि गाँव में एक ही कुआँ था। पूरा गाँव उसी कूएँ का पानी पीता था। और दो महीने पहले एक कुत्ता उस कुएँ में गिर कर मर गया था। और तब से पानी में बड़ी बदबू हो गई थी।
अब हैरानी यह थी कि गाँव वालों ने अनेक उपाय किए, पर पानी की बदबू थी कि जाती ही नहीं थी। उस कूएँ से दिन रात पानी निकाला जाता रहा, कि नीचे से नया पानी आ जाएगा और बदबू खत्म हो जाएगी। लाख पानी निकाला, पर बदबू थी कि जाती ही नहीं थी।
गाँव वालों ने अनेक यज्ञ किए, पूजा पाठ की, देवताओं को मनाया कि बदबू खत्म हो जाए, पर बदबू थी कि जाती ही नहीं थी। गाँव वालों ने कूएँ की दीवारें साफ की, उन्हें चूने से रंगा कि बदबू खत्म हो जाए, पर बदबू थी कि जाती ही नहीं थी। गाँव वालों ने कूएँ में अभिमंत्रित पवित्र जल डाला, सुगंधित औषधियाँ डाली, केवड़ा, गुलाब, खसखस का अरक डाला कि बदबू खत्म हो जाए, पर बदबू थी कि जाती ही नहीं थी।
हार कर गाँव वाले एक संत के पास गए और सारी समस्या बताई। यह भी बताया कि हम ने अभी तक क्या क्या उपाय किए हैं। संत ने सारी बात ध्यान से सुनी और शांत भाव से पूछा- उस कुत्ते का क्या हुआ? तुमने वह कुत्ता कूएँ से निकाला या नहीं? गाँव वाले एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। आप समझ ही गए होंगे कि कुत्ता कुएँ से निकाला ही नहीं गया था। लोकेशानन्द कहता है कि हम ही वह गाँव वाले हैं। मन ही कुआँ है। जीवन ही पानी है। संसार भर की वासनाएँ ही कुत्ता है। और दुख ही बदबू है।
अब गाँव वाले कितनी ही बार कुछ भी कर लें, पर जब तक कुत्ता नहीं निकालेंगे पानी से बदबू कैसे जाएगी? पानी शुद्ध कैसे होगा?
और आप कोई भी उपाय कर लें, पर जब तक संसार की वासनाएँ मन से नहीं निकालेंगे, जीवन से दुख दूर कैसे होगा? आनन्द कैसे उतरेगा?