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38वां अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेला-गायों के गोबर से बनाए उत्पाद बने आकर्षण का केंद्र

Posted on February 14, 2025

-धूप, अगरबत्ती, एक्यूप्रेशर मेट सहित अनेक उत्पाद पूरी तरह से इको फ्रेंडली के साथ है स्वास्थ्य लाभकारी

-मध्य प्रदेश परिसर में इंदौर की स्टॉल अपने अनोखे उत्पादों से पर्यटकों को खूब लुभा रही

सूरजकुंड (फरीदाबाद), 14 फरवरी।
सुनील कुमार जांगड़ा.

शिल्प के लिए विश्व विख्यात सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेला-2025 में देश-विदेशों के शिल्पकारों का शानदार व अनोखा हुनर पर्यटकों को बहुत लुभा रहा है। इस बार मेले में अलग-अलग राज्यों और विदेशों के शिल्पकारों द्वारा स्टॉल लगाकर एक से एक बेहतरीन उत्पादों की पेशकश की गई है। इन्ही में इस बार मेले के थीम स्टेट मध्य प्रदेश की स्टॉलस का परिसर पर्यटकों को खास अंदाज में अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
38 वां अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेला-2025 के इस बार थीम स्टेट मध्य प्रदेश और ओडिसा राज्य हैं। ये दोनों ही राज्य अपनी संस्कृति, विरासत और शिल्पकारी के दम पर मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मध्य प्रदेश के परिसर में एक ऐसी स्टॉल भी है, जो गाय के गोबर से विभिन्न प्रकार के इको फ्रेंडली व स्वास्थ्य लाभकारी उत्पाद से पर्यटकों को अपनी ओर खींच रही है। यह जोन-1 में स्टॉल नंबर-170 है। इस स्टॉल की संचालिका मध्यप्रदेश के जिला इंदौर की रहने वाली नीतादीप वाजपेयी ने जानकारी देते हुए बताया कि गायों के गोबर से बनाए गए विभिन्न प्रकार के उत्पाद जहां हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, वहीं ये उत्पाद पूरी तरह से इको फ्रेंडली भी है।
उन्होंने बताया कि हमारे स्टॉल पर कम बजट में काफी बेहतरीन उत्पाद हैं। इनमें गाय के गोबर से तैयार की गई धूप, अगरबत्ती, एक्यूप्रेशर मेट, शिवलिंग, गणेश जी की प्रतिमा सहित अनेक उत्पाद शामिल हैं। इन उत्पादों की कीमत मात्र 50 रुपए से शुरू होकर करीब 3000 रुपए तक की है। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से बनाया गया एक्यूप्रेशर मेट स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभकारी है। यह मेट बीपी के साथ-साथ शुगर को कंट्रोल करने और अन्य बीमारियों के प्रभाव से भी बचाता है। इसके अलावा जो उत्पाद उनके द्वारा बनाए गए हैं वह लंबे समय तक चलने वाले व टिकाऊ हैं और पर्यावरण के दृष्टिगत से पूरी तरह ईको फ्रेंडली हैं।
गौशालाओं का बनाया जा रहा आत्मनिर्भर
उन्होंने बताया कि दीपांजलि आर्ट एंड क्राफ्ट संगठन से जुड़ी हुई है। उनका संगठन जहां गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य कर रहा है, वहीं महिलाओं को भी रोजगार देकर स्वावलंबी बना रहा है। उन्होंने बताया कि इन उत्पादों के लिए गोबर को गौशालाओं से एकत्रित किया जाता है। वहीं गोबर से बनने वाले उत्पादों के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग देकर रोजगार दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनके एनजीओ द्वारा एक हजार से अधिक महिलाओं को ट्रेनिंग देकर रोजगार दिया जा चुका है। वह सर्वोदय संस्था, स्वालंबी भारत और एमएसएमई आदि से जुडक़र महिलाओं और गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रही हैं।

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