लेखक विकास विश्नोई ने अपने कलम द्वारा लिखा कि नया सूरज, नई ज़िंदगी, और एक नई शुरुआत। शादी के अगले दिन का माहौल ससुराल में हलचल भरा था। सुबह से ही घर में रस्मों की तैयारी चल रही थी। लड़की के मायके वाले – माता-पिता और रिश्तेदार – बेटी के ससुराल पहली बार आ रहे थे, एक रसम निभाने। हल्का-सा संकोच, हल्की-सी बेचैनी, और ढेर सारी उम्मीदें लेकर वे घर में दाखिल हुए।
ससुराल का दरवाजा खुला और हर तरफ मुस्कुराहटें बिखर गईं। सबने एक-दूसरे का गर्मजोशी से स्वागत किया। चाय, मिठाइयों और गपशप के बीच रसम पूरी हुई। हर कोई प्रसन्न दिख रहा था, लेकिन कहीं भीतर छिपी भावनाओं की गहराई को महसूस किया जा सकता था।
जब विदाई का समय आया, तो मायके वाले गाड़ी में बैठने लगे। बाहर ससुराल के सभी सदस्य हंसी-खुशी उन्हें विदा कर रहे थे। हाथ हिलाकर, मुस्कुराते हुए। एक खुशनुमा तस्वीर जैसी लग रही थी। लेकिन उन मुस्कानों के बीच, घर के दरवाजे पर एक कोने में खड़ी लड़की और गाड़ी में बैठी उसकी मां की आंखें भरी हुई थीं। मां बेटी को देख रही थी, बेटी मां को। कोई शब्द नहीं बोले गए, पर उनकी नज़रों ने सब कह दिया। मां की आंखों में बेटी को अलविदा कहने का दर्द था, और बेटी की आंखों में अपनी पुरानी दुनिया से दूर जाने की कसक।
मैं वहीं खड़ा सब देख मुस्कुराहटें और बहते आंसुओं के बीच का सफर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। क्या मैं मुस्कुराऊं उन खुशहाल चेहरों के साथ, या उन आंखों से बहते आंसुओं में डूब जाऊं?
उस पल ने मुझे एक अनकही कहानी सिखा दी। इंसान की ज़िंदगी मुस्कान और आंसुओं का अजीब संगम है। जो विदाई हंसी के साथ हो रही थी, उसमें भी दर्द छिपा था। और जो आंखों से आंसू बह रहे थे, उसमें भी प्यार की गहराई थी।
गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ी, और मां-बेटी की आंखों का वह संपर्क टूट गया। ससुराल वाले अब भी मुस्कुरा रहे थे, हाथ हिला रहे थे। लेकिन मैं जानता था, उस गाड़ी में बैठी मां और बेटी ने अपने दिल के एक कोने में वो पल हमेशा के लिए कैद कर लिया था।
आखिरकार, मैं वहां खड़ा, न मुस्कुरा सका, न रो सका। क्योंकि इन आंसुओं और मुस्कान के बीच झूलती हुई ही यही ज़िंदगी है।
विकास बिश्नोई
युवा लेखक